वर्तमानयुग में ये आदतें सिखाती है आपको जागरूकता से जीवन जीने की कला।

अच्छी आदतें संचार करती है आपमें जागरूकता से जीवन जीने की कला

ओशो के अनुसार, अच्छी आदतें विकसित करना केवल किसी अनुशासन या नियमों का पालन करना नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर से उत्पन्न जागरूकता और प्रेम पर निर्भर करता है। वे मानते हैं कि किसी भी चीज को आदत के रूप में अपनाना व्यक्ति को रोबोटिक बना सकता है, चाहे वह अच्छी हो या बुरी। उनका दृष्टिकोण यह है कि व्यक्ति को खुद को अनुशासन में बांधने की बजाय हर क्षण को पूरी जागरूकता के साथ जीना चाहिए, जिससे सही निर्णय और सही कर्म स्वाभाविक रूप से उभरते हैं।

1. अच्छी आदतों को मजबूरी न बनने दें

अक्सर लोग अच्छी आदतें अपनाने के लिए जबरदस्ती खुद को अनुशासन में बांध लेते हैं। वे सुबह जल्दी उठने, व्यायाम करने, अच्छा भोजन करने या समय पर सोने जैसी आदतों को मजबूरी की तरह अपनाते हैं। लेकिन ओशो कहते हैं कि जब कोई चीज मजबूरी बन जाती है, तो उसमें आनंद खो जाता है। किसी भी आदत को मजबूरी से अपनाने के बजाय उसे अपनी जागरूकता और समझ से अपनाना चाहिए। जब कोई व्यक्ति भीतर से यह महसूस करता है कि कोई चीज उसके लिए आवश्यक और लाभकारी है, तो वह स्वाभाविक रूप से उसे अपनाता है और उस कार्य में आनंद का अनुभव करता है।

2. आदतों के बजाय जागरूकता विकसित करें

ओशो का मानना है कि जीवन में कोई भी काम आदत बनकर नहीं बल्कि जागरूकता से होना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति हर सुबह जागरूकता के साथ ध्यान करता है, तो वह वास्तव में इसका लाभ अनुभव करेगा, लेकिन अगर वही ध्यान केवल आदत या मजबूरी के रूप में किया जाए, तो वह केवल एक रस्म बनकर रह जाएगा और व्यक्ति उसमें कोई गहराई महसूस नहीं करेगा।

वे कहते हैं कि अगर आप खाना खा रहे हैं, तो पूरी जागरूकता से खाइए, अगर आप चल रहे हैं, तो पूरी जागरूकता के साथ चलिए। जब भी कोई काम पूरी उपस्थिति और ध्यान से किया जाता है, तो वह आपके जीवन का एक सहज हिस्सा बन जाता है और किसी आदत के रूप में उसे अपनाने की जरूरत नहीं पड़ती।

3. ध्यान (Meditation) को जीवन का आधार बनाएं

ओशो के अनुसार, ध्यान किसी भी अच्छी आदत को विकसित करने और बुरी आदतों को स्वाभाविक रूप से छोड़ने का सबसे शक्तिशाली तरीका है। ध्यान केवल कुछ समय बैठकर आँखें बंद करने का कार्य नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षण में जागरूक रहने की कला है। जब आप ध्यान करते हैं, तो आपका मन अधिक स्पष्ट होता है, और आप अपने कार्यों को ज्यादा समझदारी और सहजता से कर सकते हैं।

वे कहते हैं कि अगर आप ध्यानपूर्वक भोजन करते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से अच्छा और संतुलित भोजन ही चुनेंगे। अगर आप ध्यानपूर्वक बोलते हैं, तो आप अनावश्यक और हानिकारक शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे। जब ध्यान आपकी जीवनशैली का हिस्सा बन जाता है, तो आपको किसी भी अच्छी आदत को जबरदस्ती अपनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि सही कार्य और सही सोच अपने आप विकसित होती है।

4. नैतिकता और नियमों से ऊपर उठें

अक्सर लोग अच्छी आदतों को नैतिकता से जोड़ते हैं और सोचते हैं कि कोई भी नैतिक व्यक्ति वही होता है जो समाज के नियमों का पालन करता है। लेकिन ओशो कहते हैं कि नैतिकता, जबरदस्ती थोपी गई चीज होती है, जबकि जागरूकता व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से सही निर्णय लेने की शक्ति देती है।

अगर कोई व्यक्ति केवल समाज के डर से सच्चाई बोलता है, तो वह सच्चा व्यक्ति नहीं कहा जा सकता, लेकिन अगर कोई व्यक्ति सचेतन रूप से यह समझता है कि सत्य ही जीवन का सार है और उसे भीतर से सच्चाई बोलने की प्रेरणा मिलती है, तो वह वास्तविक रूप से नैतिक व्यक्ति होगा।

5. जीवन को खेल की तरह देखें

ओशो का मानना है कि जीवन को गंभीरता से लेने की बजाय इसे एक खेल की तरह देखना चाहिए। जब आप किसी कार्य को हल्के और सहज मन से करते हैं, तो वह ज्यादा प्रभावशाली होता है। उदाहरण के लिए, अगर आप व्यायाम को एक कर्तव्य की तरह करेंगे, तो वह आपको बोझ लगेगा, लेकिन अगर आप उसे आनंद के साथ करेंगे, तो वह आपकी जीवनशैली का हिस्सा बन जाएगा और आपको कभी भी व्यायाम करने के लिए खुद को मजबूर नहीं करना पड़ेगा।

6. सही आदतें स्वाभाविक रूप से विकसित होती हैं

ओशो के अनुसार, कोई भी अच्छी आदत बाहरी दबाव से नहीं, बल्कि आंतरिक समझ से विकसित होती है। अगर कोई व्यक्ति गुस्से में रहता है और वह इसे बदलना चाहता है, तो वह खुद को जबरदस्ती रोकने की बजाय अपने गुस्से के पीछे की वजह को समझे और जागरूक होकर उस पर काम करे। जब व्यक्ति अपने गुस्से के कारणों को समझता है, तो वह धीरे-धीरे शांत होने लगता है और उसे कोई भी आदत जबरदस्ती अपनाने की जरूरत नहीं पड़ती।

7. वर्तमान में जिएं और खुद को स्वीकार करें

ओशो कहते हैं कि अच्छी आदतें अपनाने के लिए सबसे जरूरी चीज है कि व्यक्ति वर्तमान में जीना सीखे और खुद को पूरी तरह स्वीकार करे। जब हम भविष्य की चिंता में रहते हैं या अपने पुराने दोषों को लेकर पछताते हैं, तो हम सचेत रूप से कोई बदलाव नहीं कर पाते।

अगर कोई व्यक्ति यह सोचता रहता है कि उसे सुबह जल्दी उठने की आदत डालनी चाहिए, लेकिन हर दिन देर से उठता है और खुद को दोषी महसूस करता है, तो वह केवल अपराधबोध में जी रहा है। इसके बजाय, उसे यह देखना चाहिए कि देर से उठने की उसकी आदत किस वजह से बनी है और उसे धीरे-धीरे अपने जागने के समय को बदलने की कोशिश करनी चाहिए, बिना किसी अपराधबोध के।

निष्कर्ष

ओशो का संदेश यह है कि अच्छी आदतें कोई ऐसी चीज नहीं हैं जिन्हें जबरदस्ती अपनाया जाए। जब कोई व्यक्ति सचेत और जागरूक होकर जीवन जीता है, तो सही आदतें अपने आप विकसित हो जाती हैं और बुरी आदतें धीरे-धीरे समाप्त हो जाती हैं। उनके अनुसार, किसी भी आदत को अपनाने से पहले व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि वह आदत वास्तव में उसके लिए जरूरी है या सिर्फ समाज की अपेक्षाओं के कारण वह उसे अपनाना चाहता है। जब व्यक्ति खुद की जरूरतों और जीवन की वास्तविकता को समझता है, तो वह सहज रूप से सही आदतों को अपनाने और गलत आदतों को छोड़ने में सक्षम हो जाता है।

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